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Wednesday 22 August 2012

Keep Distance


“keep distance” या “एक निश्चित दूरी बनाएं रखें”, हम यह जुमला सड़क पर दौड़ते वाहनों के पीछे लिखा देखते हैं| शायद ही कोई ऐसा वाहन होगा जिसके पीछे यह न लिखा हो| हम इस जुमले के साथ साथ कुछ और जुमले मसलन “जगह मिलने पर पास दिया जाएगा”, “bolw horn” और “use dipper at night” हर वाहन के पीछे लिखा देखते हैं और दिन में कई बार पढकर आगे बढ़ जाते हैं| असल में यह सब जुमले नहीं बल्कि यातायात के नियम हैं, जो हर वाहन के पीछे इसलिए लिखे होते है कि हम वाहन चलाते समय कोई नियम भूले नहीं| जब भी हम कोई वाहन चलाते हैं, हमें हमेशा इन नियमों का ध्यान रखना होता है| अगर हम कभी इन नियमों की अनदेखी करते हैं तो हम किसी न किसी दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं या कोई दूसरा हमारी ग़लती का शिकार हो जाता है| कभी कभी इन नियमों की अनदेखी करना जीवन पर भारी पड़ जाता है| यातायात के यह सारे नियम इसलिए बनाए जाते है जिससे सड़क पर दौड़ता जीवन सुगम और सुरक्षित रहे| कोई हताहत या चोटिल न हो|

आज इन यातायात के नियमों को सड़क पर लागू न करके अपने जीवन पर लागू करते है और देखतें है कि इन नियमों का हमारे जीवन पर क्या असर पड़ता है|
सबसे पहले बात करते हैं “keep distance” की, मतलब एक निश्चित दूरी बनाए रखें; पर सवाल उठता है कि किससे निश्चित दूरी बनाकर रखें और क्यों? तो इस सवाल का सीधा-सा उत्तर है, हमें हमारे जीवन में पहले से मौजूद या भविष्य में आने वाले रिश्तों से हमेशा एक दूरी बनाकर रखनी चाहिए| क्योंकि बहुत ज़्यादा नज़दीकिया अक्सर कड़ुवाहट को जन्म दे देती है| कभी-कभी स्नेह के कारण हम अपने रिश्तेदारों, मित्रों के इतने करीब हो जाते हैं कि वह हमारा फ़ायदा उठा लेते हैं| प्रेम और विश्वास के चलते हम उनकों अपने राज़, अपने जीवन की कड़वी सच्चाई बता देते हैं, क्योंकि हम उनको अपना विश्वासपात्र समझते है जबकि सच्चाई इसके एकदम उलट होती है| अवसर आने पर वो लोग हमारे राज़ सबके सामने खोलने से हिचकते तक नहीं हैं और कभी कभी तो हमको ही डराते-धमकाते रहते हैं और हम उनकी हर सही-ग़लत बात को मानने के लिए मज़बूर होते है| 

अब मन में एक और प्रश्न उठता है कि क्या सभी रिश्ते ऐसे ही होते हैं? जहाँ तक मेरा मानना है तो लगभग सभी रिश्ते ऐसे ही होते है| क्योंकि हमारे साथ विश्वासघात हमारा विश्वासपात्र ही करता है| इतिहास उठाकर देखगें तो बहुत से उदाहरण मिल जाएगें कि कैसे विश्वासपात्रों ने अपने मित्रों, मालिकों और रिश्तेदारों के साथ विश्वासघात किया| जीवन जीने के लिए लोगों पर विश्वास करना आवश्यक है पर किसी के ऊपर अन्धविश्वास नहीं करना चाहिए| अगर हम किसी के ऊपर अन्धविश्वास करते हैं तो इसका सीधा सा मतलब निकलता है कि सामने वाला कुछ भी करे पर हमने अपनी आँखें बंद कर ली हैं| वह कुछ भी करे हमें उसका विरोध नहीं करते क्योंकि हम मानने लगते है कि सामने वाला हरदम सही ही है| अक्सर हम जिसके बारे में यह धारणा बना लेते हैं कि वह कभी ग़लत नहीं हो सकता; वही व्यक्ति हमें कदम कदम पर ग़लत साबित करता है और एक वक़्त ऐसा आता है कि हम सब कुछ अपने अन्धविश्वास के चलते हार जाते हैं|

जब हमारा राज़दार ही हमारा राज़ सबके सामने खोल देता है तो हमें बहुत आश्चर्य होता है| हमें उसकी गद्दारी पर यकीन नहीं होता है पर ग़लती सामनेवाले की नहीं, हमारी होती है| जब हम खुद अपना राज़ अपने तक सीमित नहीं रख पाए तो हमारा मित्र या रिश्तेदार उस राज़ को राज बनाकर क्यों रखेगा? हम अक्सर लोगों को अपना राज़दार उस समय बनाते है जब हम बहुत खुश होते है या बहुत दुखी होते हैं| इन स्थितियों में हम अपना विवेक खो बैठते है और सब कुछ लोगों को बता जाते हैं| इसलिए इन विकट परिस्थितियों में हमें हमेशा अपने दिमाग़ की लाल बत्ती जला कर रखनी चाहिए| लाल बत्ती बोले तो “use dipper at night”... जैसे रात में चलते वाहन हमेशा लाल बत्ती जलाकर रखते हैं, हमें भी हमेशा सतर्क रहना चाहिए| कभी भी अपनी ज़िन्दगी को खुली किताब नहीं बनानी चाहिए, क्योंकि खुली किताब जल्दी पीली पड़ती और फटती है| लेकिन इसका यह अभिप्राय भी नहीं है कि हम ज़िन्दगी की किताब को बंद अलमारी में दीमकों को चाटने के लिए छोड़ दें| किसी को कुछ बताने से पहले हमेशा यह सोच लेना चाहिए कि हमारे द्वारा दी गई जानकारी से भविष्य में हमें तो कोई परेशानी तो नहीं होगी|

अब बात आती है “blow horn” की, इस नियम का प्रयोग जितना सड़कों पर वाहन दौड़ाते हुए किया जाता है उसका १ प्रतिशत भी हम अपनी ज़िन्दगी में नहीं करते हैं| अक्सर देखा जाता है कि हमारे आस-पास के लोग ही हमें बार-बार चोट पहुँचाते हैं| हमारा और हमारी भावनाओं का मजाक उठाकर हमें आहत करते पर हम उनसे चाहकर भी कभी कुछ कह नहीं पाते क्योंकि वह सब लोग हमारे अपने होते है| हम उनसे संबंध खराब नहीं करना चाहते और सोचते रहते हैं कि सब अपने आप ठीक हो जाएगा पर ऐसा नहीं होता| इन स्थितियों में घुट-घुट कर जीने से बेहतर है कि हम सामने वाले को साफ़ लफ़्ज़ों में समझा दें कि दोबारा ऐसा नहीं होना चाहिए| किसी को किसी के मान-सम्मान को आहत करने का कोई हक़ नहीं है| हम सबको यह समझना चाहिए कि अपनी स्वंतत्रता वहाँ समाप्त हो जाती है जहां से किसी दूसरे की नाक शुरू होती है| जैसे समय पर बजाया गया हार्न एक बहुत बड़ी दुर्घटना हो रोक लेता है ठीक वैसे ही समय रहते लोगों को अपना नज़रिए और अपने प्रति उनका व्यवहार कैसा हो,  अच्छी तरफ़ समझा देना चाहिए| पर कई बार ऐसा होता है कि लोगों को बार बार समझाने और बताने पर भी उनको बात समझ में नहीं आती है| बार-बार वो हमारे साथ वैसा व्यवहार करते रहते हैं जिसके लिए हम उन्हें मना कर चुके होते है और तो और जब हम उन्हें टोकते है तो वो माफ़ी मांग लेते है और आइंदा ऐसा न करने का वादा करते है पर चिकने घड़े पर पानी कितनी देर टिकता है, यह तो सभी जानते हैं|

माना रिश्ते बनाने में वर्षों लग जाते हैं पर बार-बार समझाने पर भी जब कोई कुछ समझना ही नहीं चाहता तो हम क्यों हर बार किसी की बातों से अपने मन को आहत करें| हम किसी को खुश करने तथा उसके साथ रहने के लिए क्यों अपने आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाएं? क्यों घुट-घुट कर जिएँ? हमें समय रहते इन रिश्तों से दूरियाँ बना लेनी चाहिए| दुनियाँ क्या कहेगी? समाज में हमारी बे-इज्जती हो जाएगी... इन बातों को हमें दरकिनार कर देना चाहिए| हमें ज़िन्दगी खुश रहकर जीने के लिए मिली है न कि घुट-घुटकर मरने के लिए| शायद इसीलिये हर वाहन के पीछे लिखा होता है, “जगह मिलने पर पास दिया जाएगा”| रिश्ते टूटने पर दुःख और तकलीफ़ें तो ज़रूर होती हैं पर कुछ समय बाद सब पहले जैसा सामान्य और सुंदर हो जाता है|

वैसे तो यह सारे नियम यातायात को सुगम और सरल बनाने के लिए बनाए गए हैं पर हम इन नियमों के प्रयोग से अपने जीवन के यातायात को भी सरल बना सकते है| बस ज़रूरत है तो इन नियमों को अपने जीवन में कड़ाई से लागू करने की और यह पहचानने की कि कौन सा नियम कहाँ और कब लागू करना है|


Friday 10 August 2012

वो कबूतर का बच्चा!


­जब मन में अनहोनी की आशंका होती है और वह घटित हो जाती है, तो हृदय दुःख और विषाद से भर जाता है| कल रात जब मैं सोने जा रही थी मुझे यकीन था कि सुबह उठकर मुझे शतप्रतिशत दुखद समाचार से दो चार होना पडेगा और वैसा हुआ भी! आज सुबह उठकर जैसे ही आशंकित मन के साथ; मैं अपने आंगन में पहुँची, मेरी माँ ने मुझे वह दुखद समाचार सुना दिया... मैं समाचार सुनकर सिर्फ इतना ही बोल पाई “मुझे तो पता था यहीं होगा”| मेरा हृदय दुःख से भरता जा रहा था, मन मायूस हो गया| मेरी नज़रे उस छोटे-से कबूतर के बच्चे को लगातार ढूंढ रही थी और दुआ कर रही थी, काश! वह वापस आ जाए| हमने दो बार उसे बचाया था पर आज शायद उसकी किस्मत अपना खेल दिखा गई थी| आंगन में बस उस छोटे-से कबूतर की माँ बार-बार गूंटर गूं गूंटर गूं करके इधर-उधर उड़कर अपने बच्चे को ढूंढ रही थी| कभी आंगन की मुंडेरों पर बैठकर अपने बच्चे को पुकारी तो कभी रोशनदान पर अपना बार-बार सिर पटकती| उसकी आवाज में इतनी वेदना थी कि मेरा हृदय फटा जा रहा था| मैं अभी किसी की माँ नहीं हूँ फिर भी आज मेरा ह्रदय उस कबूतर के बच्चे के लिए तड़प रहा था| मुझे लग रहा था जैसे मेरा बच्चा मुझसे दूर हो गया है| मैं सिर्फ यही सोच रही थी उस माँ की हालत क्या हो रही होगी; जिसने इसे जन्म दिया, सेया है, रोज़ उसके लिए दाना लाती है|

बच्चा थोड़ा बड़ा हो गया था, उसे उड़ना सीखे हुए दो-चार दिन ही हुए थे; इसलिए मेरे आंगन में बने अपने घोंसले से निकल कर मुंडेरों पर चीं चीं करते हुए फुदकता उड़ता फिरता था| उसकी उड़ान सीमा महज़ पन्द्रह फुट से ज़्यादा नहीं थी इसलिए सिर्फ आँगन, बरामदे में ही घूमता रहता था और अगर थोड़ा जोश में आ गया तो छत की मुंडेर के एक-आध चक्कर काट कर फिर नीचे आ जाता था| उस नन्हें-से बच्चे के सिर्फ दो ही काम थे; एक तो इधर उधर उड़ना और दूसरा पूरे आंगन में बीट करना| उसकी बीट से पूरा आंगन और आंगन में रक्खा सारा समान गंदा हो रहा था पर हमको कोई आपत्ति नहीं थी | हम उनपर ध्यान भी नहीं देते कि वह और उसकी माँ क्या कर रहे है? लेकिन आज जब बच्चा हमारी नज़रों के सामने नहीं था तो हम सब सिर्फ उसकी ही बातें कर रहे थे; सारा दिमाग उस बच्चे पर टिक-सा गया था| उसकी माँ की तड़प और दर्द, हमारी रही-सही वेदना को खरोंच-सी रही थी| उसकी माँ के साथ-साथ हम भी उस नन्हें से बच्चे के लिए विकल हो रहे थे| मानों ऐसा लग रहा था जैसे कोई अपना हमारे सीने में बिछोह का खंज़र घोंप कर हमसे हमेशा के लिए बिछड़ गया है और हम सीने में दर्द लिए जीवित रहने के लिए मज़बूर हैं|

उस माँ की हालत हम समझ रहे थे जो हमेशा के लिए अपने नन्हें-से बच्चे से बिछड़ गई थी और इस बिछोह का ज़िम्मेदार कोई और नहीं मेरा भाई था| मुझे रह-रह कर अपने भाई पर गुस्सा आ रहा था; उसको क्या जरूरत थी; रात में उस नन्हें-से बच्चे को मुंडेर से उड़ाने की? उसने अपनी बीट से सिर्फ आंगन ही तो गंदा किया था, वह पानी से धोकर साफ़ कर लिया जाता| दो दिन पहले, पापा उसे मारने जा रहे थे क्योंकि वह बार बार उड़कर रसोईघर में घुसने की कोशिश रह रहा था तब नानी अम्मा और मैनें मना किया| परसों भाई को परेशान कर दिया तो वह मारने जा रहा था; तब माँ ने उसे रोक लिया और कहा “जाने दो, बेचारा बेजुबां पक्षी ही तो है, क्यों मारोगे उसे” पर कल रात को उसने पूरा आंगन अपनी बीट से गंदा कर दिया तो भाई ने उसे मारने की बजाय उड़ा दिया| भाई ने उसे मारने की बजाय उडाकर, काम तो अच्छा किया था पर वो नन्हा-सा बच्चा उड़कर अपने घोंसले में जाने की बजाय ऊपर छत की ओर उड़ गया|

जैसे ही उसके उड़ने की फड़फाड़ाहट की आवाज़ माँ और नानी अम्मा के कानों में पड़ी; वे दोनों भाई से नाराज़ हुई “क्यों रात में उसे उड़ा दिया? अब उसे कोई बिल्ली नोंच डालेगी! अब वह जिंदा नही बचेगा”, मुझे भी भाई की इस हरकत पर गुस्सा आया| हमारी छत पर अक्सर बिल्लियाँ आती हैं जो पक्षियों के छोटे छोटे बच्चों पर झपटकर अपना शिकार बनाती हैं| इसी बात से हम सब आशंकित और दुखी थे कि वह कबूतर का बच्चा भी किसी बिल्ली का आहार बन जाएगा| हम सबको दुःख तो था लेकिन वह हमारा बच्चा नहीं था इसलिए हम उसे ढूँढने भी नहीं गए | बस हम सब दुआ कर रहे थे कि वह नन्हा-सा बच्चा बच जाए| रात गहराती गई और हम सो गए| लेकिन जब सुबह उठकर कबूतर के बच्चे को आंगन में नहीं पाया तब हमें लग रहा था कि जैसे कोई अपना हमसे दूर चला गया है| हमें उसके जीवित बचने पर शक तो रात से था, लेकिन सुबह शक और गहरा हो गया जब बच्चे को आंगन में नहीं पाया; उसपर उस बच्चे की माँ का विलाप, हमें यकीन दिलाने के लिए काफ़ी था| हम दुःख और संताप से भर गए थे| कबूतरी परेशान-सी आंगन का कोना कोना छान रही थी और जब बच्चा आंगन में नहीं मिला तो उसकी तलाश में वह छत पर उड़ गई| यह घटनाक्रम करीब दो घंटे चलता रहा और हम बेबस मूकदर्शक बने देखते और दुखी होते रहे|

अचानक दीदी चिल्लाई “देखो! बच्चा!!!” यह क्या! अचानक से कबूतरी अपने बच्चे को कहीं से ढूंढ लाई! पर कहाँ से? शायद रात में डरकर बच्चा कहीं छुपकर बैठ गया होगा, जब सुबह अपनी माँ की करुण पुकार सुनी तो बाहर आ गया होगा| बच्चे को देखकर हमारा दुःख जाता रहा, हम खुशी से झूम उठे| हमारे होठों पर एक मील लम्बी मुस्कान थी, हृदय आनंद से भरा हुआ था|
दीदी फिर से बोली आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन भगवान किसी को दुःख नहीं दे सकते”, शायद यह बात सत्य भी है| कबूतर का बच्चा और उसकी माँ बहुत खुश है, वह दोनों सुबह से साथ साथ हैं| शायद भाई की कल वाली हरकत से वह दोनों इतना भयभीत है कि वह छत की मुंडेर से नीचे आंगन में नहीं आए हैं|

अब मैं सिर्फ इतना ही सोच रही हूँ कि जो दर्द और दुःख हमें हो रहा था, भाई को क्यों नहीं हुआ? पापा को उस बच्चे से ममता क्यों नहीं हुई? उसकी बीट हम औरतों को ही दिनभर साफ करनी पड़ती है फिर भी हमें उस पर गुस्सा नहीं आया| क्या सच में पुरुष के सीने में ममता और प्रेम नहीं होता? क्या ईश्वर ने उसकी प्रकृति निष्ठुर ही बनाई है? उस बच्चे को अगर कोई बिल्ली खा जाती तब पापा और भाई को संताप होता? क्या वे दोनों उसकी मौत को आसानी से भुला देते? बहुत से सवाल मेरे मन में उठ रहे है, जिनका मेरे पास कोई उत्तर नहीं है|
पर आज मैं और घर की सभी औरतें खुश हैं कि कबूतर का छोटा-सा बच्चा जीवित है| हम यही कामना करते हैं कि वह बच्चा चिरंजीवी हो|

श्रीकृष्ण प्रेम के देव है, विश्व में व्याप्त सम्पूर्ण प्रेम का केन्द्र श्रीकृष्ण ही हैं| इसलिए आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन मैं ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ, “हे नाथ! थोड़ा सा प्रेम और ममत्व का संचरण पुरुष हृदय में भी करें”|


Wednesday 1 August 2012

अतीत

गूगल से साभार 
अतीत, जीवन का वह पल है जिसको हम भविष्य का साथ पाने के लिए, अपने वर्तमान के पीछे छोड़ आए हैं| जो आज अभी है, वो दिन ढलने के बाद अतीत बन जाता है| अतीत की स्मृतियों के चिन्ह सदैव हमारे साथ रहते हैं|  हमारा अतीत ही हमें हमारे होने का एहसास करता है| न चाहते हुए भी हम हमेशा अपने अतीत से जुड़े रहते है क्योंकि हमारा अतीत हमारे अस्तित्व का एक साक्ष्य है| अतीत हमारे जीवन का एक हिस्सा है, जिसे न तो फिर से बनाया जा सकता है और न कभी पूर्णतयाः मिटाया जा सकता है| अक्सर जब भी अतीत का प्रसंग आता है; हम सबको अपने अतीत में की गई गलती या दुखद घटनाएं ही याद आती हैं क्योंकि हमारे द्वारा की गई गलती, हमेशा हमारी अंतरात्मा को कचोटती रहती है| ऐसा नहीं है कि अतीत कभी सुन्दर नहीं हो सकता परन्तु सुखद यादें समय के साथ धूमिल हो जाती है, जिसे हम आसानी से भूल जाते है और इसीलिये अतीत हमें कटु एवं कष्टकारी लगता है|


हम अपने अतीत से बचने के लिए हर संभव कोशिश करते है; कभी किसी का सहारा लेते तो कभी खुद को कमरे में बंद करके अतीत से भागते  हैं| लाख दरवाजे बंद कर लेने बावज़ूद अतीत हम पर हमेशा हावी रहने की कोशिश में रहता है; अपनी तरफ़ मज़बूती से खींचता है| अतीत पर चाहें जितने भी पहरे लगाओ, वह पल भर में बंधन मुक्त होकर हमारे सामने मुंह उठाकर खड़ा हो जाता है और हम कुछ नहीं कर पाते हैं| अतीत बेरहम होता है, सबके सामने हमारी इज्ज़त तार तार करने की हर बार धमकी देता है| हमें डरा कर अपने बाहुपाश में बांधे रखता है|


समय के साथ परिवेश बदल जाते हैं, रिश्ते बदल जाते हैं, आबोहवा बदल जाती है, यहाँ तक कि लोगों की पहचान बदल जाती है पर अतीत कभी नहीं बदलता| हमारी लाख कोशिशों के बावजूद भी हम अपने अतीत के भयानक चंगुल से नहीं बच पाते हैं| हमारे मरने के बाद भी अतीत कभी भी हमारा पीछा नहीं छोड़ता है, वह स्वयं जीवित रहता और हमें भी जीवित रखता है| अतीत, हमारा वर्तमान और भविष्य दोनों ही निगल जाने के लिए आतुर रहता है| हमें बर्बाद करने का रोज़ एक नया पैतरा ढूढ़ता रहता है और अक्सर हमें बर्बाद कर भी देता है|


पर ऐसा नहीं है कि हम इस अतीत नामक दानव पर विजय प्राप्त नहीं कर सकते हैं; क्योंकि इस मृत्युलोक में सबका का अंत निश्चित है| सत्य को स्वीकार करने की क्षमता ही मात्र एक ऐसा अस्त्र है, जिससे अतीत को भी मारा जा सकता है| सत्य को स्वीकार करके हम अपने दुखद अतीत के सम्पूर्ण साम्राज्य का अंत कर सकते हैं|  यदि हमें अपना वर्तमान और भविष्य दोनों सुंदरतम एवं शांतिपूर्ण चाहिए तो अतीत का सत्य कितना भी कटु क्यों न हो; हमें दृढ़ता एवं विनम्रता के साथ उसे स्वीकार कर लेना चहिये; क्योंकि अतीत एक सत्य है और सत्य को न तो हराया जा सकता है और न कभी छुपाया जा सकता है|


यदि समय रहते गलती को सुधारा न जाए तो यही गलती भविष्य में अतीत का विकराल रूप लेकर हमारे सामने आती है और हमारे मान सम्मान को तार तार कर देती है; हमारी प्रतिष्ठा पर गहरा आघात करती है|  गलती करना मनुष्य का स्वभाव है, अक्सर बाल्यावस्था में की गई गलतियाँ क्षम्य होती हैं क्योंकि बचपन विवेकरहित एवं बोधराहित होता है| परन्तु युवावस्था में की गई गलतियों की सजा हमें वृद्धावस्था में ब्याज सहित चुकानी पड़ती हैं|


जैसा कि आजकल देश के एक वरिष्ठ नेता जी के साथ हो रहा है| नेता जी के पलभर छलावे सुख की लालसा ने उनकी ज़िन्दगी भर की कमाई इज्ज़त को सरेआम नीलम कर दिया| उनके अतीत से वह जितने शर्मसार हुए हैं, उससे कहीं ज्यादा उनका परिवार शर्म झेल रहा है| हम नेता जी को अविवेकी नहीं कह सकते क्योंकि वह  देश और समाज से जुड़े निर्णय ले रहे हैं| अगर उन्होंने जोश में अपने होश न होए होते तो शायद आज उनकी समाज में इतनी किरकिरी न हो रही होती| इस कृत्य में नेता जी और उनकी सहभागी दोनों की ही बराबर के ज़िम्मेदार हैं परन्तु बेइज्जती सिर्फ नेता जी की हुई क्योंकि नेता जी सच्चाई को सिरे से नकार रहे थे|
गर नेता जी ने अपनी गलती स्वीकार कर ली होती तो शायद उनके अतीत ने उनके वर्तमान को पानी-पानी न किया होता|


अतीत, संदूक में बंद लाश के समान है जिस पर चाहें जितना भी चन्दन का इत्र लगाओ, खुलने पर सड़ांध आती ही है|